बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अनंत सिंह को बड़ी राहत, जेल से रिहा होकर लौटे बाहर
पटना: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मोकामा के पूर्व विधायक और बाहुबली नेता अनंत सिंह को जेल से जमानत पर रिहा कर दिया गया है। लंबे समय से पटना के बेउर जेल में बंद अनंत सिंह की रिहाई ऐसे समय पर हुई है जब राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। उनकी रिहाई को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।
फरवरी में खारिज हुई थी जमानत, अब मिली राहत
बता दें कि फरवरी 2025 में अनंत सिंह ने जमानत के लिए याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। लेकिन अब उन्हें जमानत मिल गई है, और वे जेल से बाहर आ गए हैं। इससे पहले उन्होंने 24 जनवरी 2025 को सरेंडर किया था, जब उनके ऊपर आर्म्स एक्ट, हत्या के प्रयास और अन्य गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ था।
मोकामा गोलीकांड बना था गिरफ्तारी की वजह
पूरा मामला 22 जनवरी 2025 को मोकामा के नौरंगा इलाके में हुई गोलीबारी से जुड़ा है। इस घटना में अनंत सिंह बाल-बाल बच गए थे, जब सोनू-मोनू गिरोह द्वारा उनके काफिले पर फायरिंग की गई। जवाबी कार्रवाई में अनंत सिंह के समर्थकों ने भी फायरिंग की, जिसके बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया।पुलिस ने इस घटना के सिलसिले में अनंत सिंह को नामजद करते हुए एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने खुद को कानून के हवाले कर दिया था।
लंबे समय से रहे हैं विवादों में
अनंत सिंह का नाम बिहार की राजनीति के सबसे चर्चित और विवादित चेहरों में आता है। मोकामा से वे कई बार विधायक रह चुके हैं और उन्हें ‘छोटे सरकार’ के नाम से भी जाना जाता है। अपने तेजतर्रार और विवादास्पद बयानों की वजह से वे लगातार सुर्खियों में बने रहते हैं।
वर्ष 2018 में वे तब फिर चर्चा में आए थे जब उनके पैतृक आवास से एके-47 राइफल, हैंड ग्रेनेड और भारी मात्रा में कारतूस बरामद किए गए थे। इस मामले में उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद 2020 में उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी।
हालांकि, अगस्त 2024 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया था और तत्काल रिहाई के आदेश दिए थे।
चुनाव से पहले रिहाई बनी सियासी चर्चा
चूंकि बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में अनंत सिंह की रिहाई को राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है। उनकी वापसी से मोकामा और आसपास की राजनीति में नई हलचल पैदा हो सकती है। समर्थक जहां उनकी रिहाई को ‘न्याय की जीत’ बता रहे हैं, वहीं विरोधी इसे चुनावी समीकरण बदलने वाला घटनाक्रम मान रहे हैं।






