CJI की बड़ी टिप्पणी: “दल-बदल पर रोक नहीं लगी तो लोकतंत्र हो सकता है कमजोर”
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि राजनीतिक दल-बदल (Political Defection) भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिला सकता है अगर इसे समय रहते नहीं रोका गया। मुख्य न्यायाधीश की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीआर गवई ने यह टिप्पणी उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की, जिनमें विधायकों के पार्टी बदलने के बावजूद स्पीकर द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने को चुनौती दी गई थी
राजनीतिक दल-बदल पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दल-बदल अब केवल राजनीतिक संकट नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सीधा खतरा बनता जा रहा है। जस्टिस गवई ने कहा:
“राजनीतिक दलबदल राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है। अगर इसे समय रहते नहीं रोका गया, तो यह लोकतंत्र को बाधित करने की शक्ति रखता है।”
कोर्ट ने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 136 और अनुच्छेद 226/227 के तहत स्पीकर के निर्णयों की न्यायिक समीक्षा सीमित दायरे में होती है, लेकिन जब स्पीकर निष्क्रिय रहते हैं या देर से निर्णय देते हैं, तो न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।
संसदीय मंशा: स्पीकर को क्यों दी गई थी यह शक्ति?
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों राजेश पायलट और देवेंद्रनाथ मुंशी के संसद में दिए गए भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि विधायकों की अयोग्यता तय करने की जिम्मेदारी स्पीकर को इसलिए दी गई थी, ताकि अदालतों में मामलों की देरी से बचा जा सके।
इस निर्णय का उद्देश्य यह था कि विधायकों की अयोग्यता संबंधी मामलों का निपटारा त्वरित और निष्पक्ष तरीके से किया जा सके।
तेलंगाना के मामले में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी
कोर्ट में पेश एक मामले में बताया गया कि तेलंगाना के 10 BRS विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे, लेकिन स्पीकर ने सात महीने तक उनकी अयोग्यता पर कोई निर्णय नहीं लिया।
इस पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस गवई ने कहा:
“स्पीकर ने तब तक कोई कदम नहीं उठाया जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी नहीं किया। यह कार्यप्रणाली उस संवैधानिक भावना के खिलाफ है जिसके तहत यह जिम्मेदारी स्पीकर को दी गई थी।”
‘किहोतो होलोहन’ केस का हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ऐतिहासिक ‘किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू’ (1992) केस का भी हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि:
- स्पीकर की भूमिका न्यायिक नहीं, अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) होती है।
- उनके फैसलों पर न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की गुंजाइश सीमित है, लेकिन मनमाने या अनुचित निर्णय पर अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश:
- दल-बदल लोकतंत्र को कमजोर करता है, इस पर शीघ्र और स्पष्ट निर्णय की आवश्यकता है।
- स्पीकर की निष्क्रियता अदालत के हस्तक्षेप को न्योता देती है और इससे जनप्रतिनिधित्व की पवित्रता पर सवाल उठते हैं।
- अगर इस प्रवृत्ति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो जनता का विश्वास संविधानिक संस्थाओं पर से उठ सकता है।






