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नरकटिया विधानसभा सीट: राजद बनाम जदयू की सीधी टक्कर, मुस्लिम मतदाता हो सकते हैं निर्णायक

यह सीट, जो मुस्लिम बहुल (26.8%) क्षेत्र है, पिछले एक दशक से RJD के प्रभाव में रही है, लेकिन JDU इस बार इसे जीतने की पूरी कोशिश कर रही है।

मोतिहारी (पूर्वी चंपारण): बिहार की नरकटिया विधानसभा सीट एक बार फिर चुनावी सुर्खियों में है। 2008 के परिसीमन के बाद बनी इस सीट पर 2010 से अब तक तीन बार चुनाव हो चुका है और अब 2025 में होने वाले चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। राजद और जदयू के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है, जबकि प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज भी इस बार अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी में है।

राजद का किला, जदयू की चुनौती

इस सीट पर राजद के शमीम अहमद लगातार दो बार (2015 और 2020) जीत दर्ज कर चुके हैं। 2020 में उन्होंने जदयू के श्याम बिहारी प्रसाद को हराकर 85,562 वोट (46.69%) हासिल किए थे, जबकि श्याम बिहारी को 57,771 वोट (31.53%) मिले। इससे पहले 2010 में श्याम बिहारी ने जदयू के टिकट पर ही यह सीट जीती थी।

अब 2025 में जदयू एक बार फिर इस सीट पर वापसी की कोशिश में है। लेकिन शमीम अहमद की मजबूत उपस्थिति और राजद के संगठनात्मक ढांचे के चलते यह राह आसान नहीं होगी।

100% ग्रामीण क्षेत्र, मुद्दों की भरमार लेकिन असर सीमित

नरकटिया पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र (100%) है और यहां के चुनावी मुद्दे भी इसी पृष्ठभूमि से निकलते हैं। बाढ़, कटाव, पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, और प्रशासनिक उदासीनता यहां की प्रमुख समस्याएं हैं।

हालांकि अब तक इन मुद्दों का चुनावी असर सीमित ही रहा है, क्योंकि जातीय समीकरण अधिक प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन इस बार प्रशांत किशोर इन मुद्दों को जनता के बीच केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे मुकाबला कुछ हद तक मुद्दा-आधारित भी हो सकता है।

मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में

इस सीट पर मुस्लिम मतदाता करीब 26.8% हैं, जो किसी भी चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इनके अलावा यादव, पासवान और रविदास समुदाय के मतदाता भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 9.3% हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी केवल 0.22% है।

जातिगत समीकरणों के इस जाल में हर दल अपनी रणनीति के तहत समीकरण साधने में जुटा है।

जनसुराज की एंट्री से बढ़ी हलचल

जनसुराज अभियान के जरिए प्रशांत किशोर नरकटिया जैसे क्षेत्रों में जनता को मुद्दों के आधार पर वोट देने के लिए जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी सक्रियता बढ़ी है, जिससे पारंपरिक दलों की रणनीति पर असर पड़ सकता है। हालांकि उनकी पार्टी का प्रभाव कितना गहरा है, यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे।

मुकाबला पारंपरिक और प्रयोगात्मक राजनीति के बीच

नरकटिया विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला केवल दो पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों राजद और जदयू के बीच नहीं रहेगा। जनसुराज जैसी नई ताकत की मौजूदगी ने चुनावी गणित को कुछ हद तक उलझा दिया है। यहां की जातीय संरचना और सामाजिक समस्याएं मिलकर एक जटिल चुनावी परिदृश्य खड़ा कर रही हैं।

अब देखना यह है कि क्या मुद्दे वाकई मतदाताओं के सोच को बदल पाएंगे, या फिर एक बार फिर जातीय गणित और परंपरागत पार्टी वफादारी ही निर्णायक साबित होगी।

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