चातुर्मास 2025: जब शिव के हाथों में रहती है सृष्टि की बागडोर, जानिए इस पुण्यकाल का महत्व और नियम

धर्म-आस्था डेस्क : इस वर्ष चातुर्मास 2025 की शुरुआत 7 जुलाई (सोमवार) से देवशयनी एकादशी के दिन हो रही है। चार माह तक चलने वाला यह विशेष धार्मिक काल 5 नवंबर को प्रबोधिनी एकादशी के साथ समाप्त होगा। इन महीनों में भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और तब संपूर्ण सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। यह समय भक्तों के लिए साधना, भक्ति और आत्मशुद्धि का सबसे उत्तम काल माना जाता है।
क्या है चातुर्मास?
संस्कृत में ‘चातुर्मास’ का अर्थ होता है – चार महीने। यह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और त्रिलोक का संचालन भगवान शिव करते हैं। यही कारण है कि चातुर्मास के चारों माह में शिव की आराधना का विशेष महत्व होता है।
शिव की विशेष कृपा का काल
चातुर्मास के पहले दो महीने (सावन और भादो) में विशेषकर भोलेनाथ की पूजा की जाती है। सावन महीना तो शिव का सबसे प्रिय महीना माना गया है। इस काल में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भस्म, धतूरा, और भांग अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इन चार महीनों में शिवभक्ति करने से पापों का नाश, मनोकामनाओं की पूर्ति, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें – न्यूनतम 108 बार
चातुर्मास में क्या करें?
- नियमित पूजा-पाठ, विशेषकर शिव चालीसा और रुद्राभिषेक
- व्रत-उपवास और सात्विक भोजन
- ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ध्यान व जप
- गरीबों और जरूरतमंदों को दान
- धार्मिक ग्रंथों जैसे भगवद्गीता, शिव पुराण का पाठ
इन बातों का रखें ध्यान
चातुर्मास के दौरान शादी-विवाह, गृह प्रवेश, नए कार्यों की शुरुआत जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। यह समय आत्मसंयम और साधना का होता है, इसलिए तामसिक आहार, मद्यपान, मांसाहार और असंयमित जीवनशैली से बचना चाहिए।
क्यों है 2025 का चातुर्मास विशेष?
पंचांगों के अनुसार, 2025 में चातुर्मास का योग अत्यंत शुभ है क्योंकि इस वर्ष सावन का महीना पूरे 5 सोमवारों का है। ऐसा योग कई वर्षों बाद बन रहा है, जिससे शिवभक्तों के लिए यह चातुर्मास अत्यधिक फलदायी माना जा रहा है। मंदिरों में विशेष आयोजन और कांवड़ यात्राएं पूरे देश में जोर-शोर से होंगी।सावन महीना शिवजी को सर्वाधिक प्रिय है – इसी में उन्होंने हलाहल विष पान किया था
भाद्रपद में कृष्ण जन्माष्टमी और हरतालिका तीज का महत्व
आश्विन में नवरात्रि और दुर्गा पूजा की धूम
कार्तिक में दीपावली और छठ पूजा की पवित्रता
विशेष सलाह
- इस अवधि में ज्योतिषीय दृष्टि से शनि और राहु-केतु का प्रभाव रहता है
- मंत्र सिद्धि के लिए यह उत्तम समय है
- दान-पुण्य का विशेष महत्व – अन्न, वस्त्र, छत्र और जलदान करें
आध्यात्मिक विश्लेषण
ज्योतिषाचार्य पंडित विशाल दीक्षित के अनुसार,
“इस वर्ष चातुर्मास में बृहस्पति और शनि की विशेष युति बन रही है जो धार्मिक क्रांति लाएगी। शिव भक्तों को इस अवधि में त्रिस्तरीय लाभ – आध्यात्मिक, भौतिक और कर्मिक प्राप्त होगा।”
समापन
चातुर्मास का यह पावन काल आत्मशुद्धि और भक्ति का सर्वोत्तम अवसर है। भोले बाबा की कृपा पाने के लिए इस अवधि में सात्विक जीवन जीएं और नियमित पूजा-अर्चना करें।