बिहार वोटर लिस्ट विवाद: SC में 65 लाख नाम हटाने पर तीखी बहस, EC से जवाब तलब
नई दिल्ली — बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अहम सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
याचिकाकर्ताओं का आरोप
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और गोपाल शंकर नारायणन ने कोर्ट को बताया कि SIR प्रक्रिया के दौरान संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी की गई और बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) समेत संबंधित अधिकारियों ने मनमानी की। उनका दावा है कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से करीब 65 लाख नाम हटा दिए गए, जिनमें जीवित लोगों को मृत घोषित करना और मृतकों को जीवित दिखाना जैसी गंभीर गलतियां शामिल हैं। एक जिले में 12 जीवित लोगों को मृत के रूप में दर्ज किया गया है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि वर्तमान सूची ड्राफ्ट रोल है और इसमें त्रुटियां होना स्वाभाविक है। आयोग ने सभी प्रभावित लोगों को आपत्ति दर्ज कराने और सुधार आवेदन देने का मौका दिया है। उन्होंने कहा कि मृत और जीवित के गलत रिकॉर्ड की शिकायत सीधे BLO के माध्यम से ठीक कराई जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि अदालत पहले यह जांचेगी कि SIR में अपनाई गई प्रक्रिया सही और पारदर्शी थी या नहीं, उसके बाद इसकी वैधता पर फैसला होगा। अदालत ने आयोग से यह भी पूछा कि कितने लोगों को मृतक के रूप में चिन्हित किया गया और इस संबंध में अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की।
SIR क्या है?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन चुनाव आयोग की विशेष प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची का गहन अद्यतन और शुद्धिकरण किया जाता है। इसमें नए पात्र मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं, मृत या स्थानांतरित व्यक्तियों के नाम हटाए जाते हैं और गलतियों को सुधारा जाता है।
आम तौर पर मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण होता है, लेकिन SIR किसी विशेष राज्य या क्षेत्र में व्यापक स्तर पर चलाया जाता है। बिहार में यह प्रक्रिया 2025 विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई थी।






