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भारत रत्न की दौड़ में ‘भोजपुरी के शेक्सपियर’: मनोज तिवारी-रवि किशन ने उठाई मांग

भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ की मांग को लेकर बिहार से एक नई लहर उठी है। भोजपुरी भाषी क्षेत्रों के महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर को मरणोपरांत यह सम्मान दिए जाने की मांग को लेकर भाजपा के दो प्रमुख सांसद और भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी एवं रवि किशन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर समर्थन जताया है।

नई दिल्ली/पटना: भोजपुरी साहित्य और लोकनाट्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग एक बार फिर से मुखर हो उठी है। इस बार यह आवाज केवल आम जनता से नहीं, बल्कि लोकसभा सांसदों और मशहूर भोजपुरी कलाकारों मनोज तिवारी और रवि किशन जैसे राजनीतिक और सांस्कृतिक हस्तियों की ओर से उठाई गई है।

दोनों बीजेपी सांसदों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है। उनका तर्क है कि भिखारी ठाकुर का योगदान केवल कला और साहित्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज सुधार की दिशा में भी ऐतिहासिक कार्य किए।

भोजपुरी का गौरव: भिखारी ठाकुर कौन थे?

भिखारी ठाकुर (1887–1971) बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर गांव में जन्मे थे। वह नाई जाति से थे और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग से आने के बावजूद उन्होंने लोकनाट्य, कविता, गीत, नृत्य, और सामाजिक संदेशों से परिपूर्ण मंचन के माध्यम से भोजपुरी भाषा को एक नई पहचान दिलाई।

उन्हें “भोजपुरी का शेक्सपियर” कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने भोजपुरी नाटक और साहित्य को उस ऊंचाई तक पहुंचाया जहाँ से वह पूरे उत्तर भारत में जन-जन की आवाज़ बन गई।

‘बिदेसिया’ से लेकर ‘बेटी बेचवा’ तक – जनमानस के दर्द की आवाज

भिखारी ठाकुर के नाटकों में समाज की विसंगतियाँ, पीड़ा और संघर्ष प्रत्यक्ष झलकते हैं। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘बिदेसिया’, ‘गंगा स्नान’, ‘गबर घिचोर’, ‘बेटी बेचवा’, ‘भाई विरोध’, और ‘नई बहार’ जैसे नाम शामिल हैं, जो आज भी भोजपुरी रंगमंच और लोककलाओं में जीवंत हैं।

इन नाटकों के माध्यम से उन्होंने प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, नारी शोषण, दहेज प्रथा, और जातिगत भेदभाव जैसे मुद्दों पर खुलकर सवाल उठाए।

मनोज तिवारी: ‘‘भिखारी ठाकुर समय से आगे सोचने वाले कलाकार थे’’

भोजपुरी फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता और दिल्ली से बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की है।

“भिखारी ठाकुर एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे – गीतकार, नाटककार, निर्देशक, अभिनेता और समाज सुधारक। उन्होंने अपने समय में थिएटर को माध्यम बनाकर समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया। उनके नाटक आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं,” तिवारी ने अपने पत्र में लिखा।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ठाकुर जैसे लोक कलाकारों को राष्ट्रीय सम्मान देकर लोकसंस्कृति और भाषाई विविधता को भी सम्मानित किया जा सकता है।

रवि किशन: ‘‘भिखारी ठाकुर भोजपुरी जनमानस के संवेदनाओं के सच्चे प्रतिनिधि थे’’

गोरखपुर से बीजेपी सांसद और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार रवि किशन ने भी इस मांग का समर्थन किया है।

“भिखारी ठाकुर ने अपनी लेखनी और मंचन से आम जनता की पीड़ा को स्वर दिया। उनकी रचनाएं दिल से निकलीं और लोगों के दिलों तक पहुँचीं। भारत रत्न जैसे सम्मान से उन्हें नवाजना पूरे भोजपुरी समाज का गौरव बढ़ाएगा,” रवि किशन ने कहा।

भोजपुरी समाज की भावना और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व का सवाल

यह मांग केवल एक कलाकार को सम्मानित करने की नहीं, बल्कि एक पूरे भाषाई और सांस्कृतिक समुदाय को राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने की है। भोजपुरी एक सशक्त भाषा है जिसे करोड़ों लोग बोलते हैं, लेकिन इसके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान को वह राष्ट्रीय पहचान अभी तक नहीं मिल पाई जिसकी वह हकदार है।

भिखारी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है।

क्या सरकार मानेगी ये मांग?

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या केंद्र सरकार इस बार इस सांस्कृतिक प्रतीक पुरुष को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजेगी। यदि ऐसा होता है, तो यह न केवल भिखारी ठाकुर की स्मृति को श्रद्धांजलि होगी, बल्कि लोककला, क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति के प्रति सम्मान का राष्ट्रीय उदाहरण भी बन जाएगा।

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