बिहार: प्रशांत किशोर की सभा में भोजन पर टूटी जनता, भाषण के दौरान खाली रहीं कुर्सियाँ

किशनगंज के बहादुरगंज में आयोजित सभा में मटन बिरयानी, दाल-भात और सब्ज़ी की व्यवस्था पर उमड़ी भीड़ के कारण कुर्सियाँ खाली रह गईं.
किशनगंज (बिहार):राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा के तहत बहादुरगंज (किशनगंज) में आयोजित ‘बदलाव सभा’ एक अनोखे कारण से सुर्खियों में आ गई। जहां मंच पर प्रशांत किशोर राज्य में बदलाव की बातें कर रहे थे, वहीं ज़मीन पर लोग मटन, बिरयानी और दाल-भात की दावत में मशगूल दिखाई दिए। नतीजा यह हुआ कि मंच के सामने सजी सैकड़ों कुर्सियां लगभग खाली रहीं, जबकि भोजन के लिए लोगों की लंबी कतारें देखने को मिलीं।
सभा में दिखा ‘भोजन प्रभाव’
सभा के आयोजन से पहले स्थानीय कार्यकर्ताओं ने प्रचार किया था कि आने वाले लोगों के लिए विशेष भोज की व्यवस्था की गई है। इसमें दाल-भात, सब्ज़ी, मटन और वेज बिरयानी जैसी आकर्षक व्यंजन शामिल थे। भोजन की खुशबू जैसे ही दूर-दूर तक फैली, वैसे ही स्थानीय लोग बड़ी संख्या में सभा स्थल पर पहुंचने लगे, लेकिन उनका मकसद भाषण सुनना कम और दावत में हिस्सा लेना ज़्यादा था।
खाली कुर्सियां और लंबी पंगतें
सभा के दौरान मंच पर प्रशांत किशोर अपने विचार और नीति साझा कर रहे थे, लेकिन पंडाल में कुर्सियां खाली नजर आईं। वहीं दूसरी ओर, भोजन की व्यवस्था के पास भीड़ उमड़ पड़ी। स्थिति कुछ ऐसी थी जैसे राजनीतिक सभा नहीं बल्कि किसी विवाह समारोह का भोज चल रहा हो। आयोजकों ने करीब 5,000 लोगों के भोजन का इंतजाम किया था, जिसे लोग पूरी तरह से भुनाते नजर आए।
विपक्ष ने ली चुटकी, उठे गंभीर सवाल
इस घटनाक्रम के बाद विपक्षी दलों को मौका मिल गया। उन्होंने प्रशांत किशोर और जनसुराज पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अब जनता सिर्फ भाषणों से नहीं, ज़मीनी कामों से जुड़ाव दिखाती है। एक नेता ने कहा, “लोग अब भाषणों से ऊब चुके हैं, उन्हें रोजगार, विकास और ठोस योजनाओं की ज़रूरत है। दावत से भीड़ जुट सकती है, लेकिन समर्थन नहीं।”
पार्टी की सफाई और आयोजकों का पक्ष
जनसुराज के स्थानीय नेता अबू बरकात ने कहा कि, “हमारा मकसद था कि जो लोग सभा में आएं, उन्हें कोई असुविधा न हो, इसलिए खाने की व्यवस्था की गई थी।”
वहीं नेता इकरामुल हक ने भी बताया कि यह आयोजन पूरी तरह से लोगों को पार्टी की नीतियों से अवगत कराने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन बड़ी संख्या में लोग भोजन तक सीमित रह गए।
राजनीतिक प्रभाव और जनसंपर्क की हकीकत
प्रशांत किशोर पिछले कुछ वर्षों से ‘जनसुराज’ नामक आंदोलन के ज़रिए बिहार में राजनीतिक विकल्प देने का दावा कर रहे हैं। वे गांव-गांव जाकर लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं और दावा करते हैं कि राज्यभर से उन्हें समर्थन मिल रहा है। लेकिन इस आयोजन ने यह भी दिखाया कि भीड़ जुटाना और जनसमर्थन हासिल करना—दोनों में बड़ा फर्क है।