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बिहार बंद का ऐलान: वोटर लिस्ट विवाद पर पप्पू यादव का बड़ा सियासी दांव!

पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने इस प्रक्रिया को गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार दिया है।

पटना: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने चुनाव आयोग की ‘विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR)’ प्रक्रिया के विरोध में 9 जुलाई को बिहार बंद का ऐलान किया है। साथ ही, उन्होंने चुनाव आयोग के कार्यालय घेरने और हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की योजना भी बनाई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पप्पू यादव ने चुनाव से ठीक पहले एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ खेलते हुए इस मुद्दे को उठाकर सियासी समीकरण बदलने की कोशिश की है।

क्या है पूरा विवाद?

चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया, जो 25 जून से 25 जुलाई 2025 तक चलेगा। इसके तहत, राज्य के करीब 8 करोड़ मतदाताओं को अपनी नागरिकता और मतदाता पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे, जैसे:

  • जन्म प्रमाण पत्र
  • पासपोर्ट
  • मूल निवास प्रमाण पत्र
  • 1 जुलाई 1987 से पहले जारी कोई सरकारी दस्तावेज

विपक्ष का आरोप:
कांग्रेस, RJD, AIMIM और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह प्रक्रिया “अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों को वोटर लिस्ट से हटाने की साजिश” है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया है।

पप्पू यादव ने क्या कहा?

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पप्पू यादव ने कहा:

  • “9 जुलाई को पूरा बिहार बंद रहेगा। हम चुनाव आयोग के कार्यालय को घेरेंगे।”
  • “आज ही हाई कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। यह सरकार गरीबों, दलितों और अति पिछड़ों के वोटिंग अधिकार छीन रही है।”
  • “चुनाव आयोग RSS का कार्यालय बन गया है। यहां RSS के इशारे पर वोटर लिस्ट तैयार होती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेंगे

पप्पू यादव ने क्यों उठाया यह मुद्दा?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पप्पू यादव इस आंदोलन के जरिए तीन बड़े फायदे हासिल करना चाहते हैं:

  1. दलित-पिछड़े वोट बैंक को साधना: वे खुद को गरीबों और वंचितों का मसीहा साबित करना चाहते हैं।
  2. कांग्रेस के साथ गठजोड़ मजबूत करना: हाल ही में उनकी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ है, और यह मुद्दा उन्हें विपक्ष की अगुवाई करने का मौका देता है।
  3. 2025 चुनाव से पहले प्रासंगिकता बढ़ाना: 2019 और 2024 में भी पप्पू यादव ने ज्वलंत मुद्दों को उठाकर अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत की थी।

क्या होगा आगे?

  • 9 जुलाई को बिहार बंद के दौरान व्यापक प्रदर्शनों की आशंका।
  • चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ने की संभावना, शायद नियमों में ढील मिले।
  • अगर हाई कोर्ट में याचिका स्वीकार हुई, तो प्रक्रिया पर रोक भी लग सकती है।

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