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Bihar Election 2025: चंद्रशेखर आज़ाद ने चुनावी रण में फेंका बड़ा दांव, 40 उम्मीदवारों के एलान से विपक्ष में हलचल

NDA के पास बिहार में सबसे ज्यादा आरक्षित सीटें हैं। ASP के मजबूत उम्मीदवारों के कारण इन सीटों पर दलित वोटों के बंटवारे से एनडीए को नुकसान हो सकता है।

पटना:बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भले ही अभी नहीं हुआ है, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। इसी कड़ी में चंद्रशेखर आज़ाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने चुनावी रण में सबसे पहले बड़ी एंट्री मारते हुए अपने 40 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। यह सूची पार्टी ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर साझा की।

चंद्रशेखर की पार्टी बिहार चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करने वाली दूसरी पार्टी बनी है, इससे पहले AIMIM दो नामों की घोषणा कर चुकी है। लेकिन 40 सीटों पर एक साथ उम्मीदवार उतारकर आज़ाद समाज पार्टी ने सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को चौंका दिया है।

क्यों अहम है चंद्रशेखर का यह कदम?
इस घोषणा के साथ चंद्रशेखर ने दो बड़े राजनीतिक गठबंधनों — एनडीए और महागठबंधन — को एक साथ संदेश दे दिया है कि वे अब सिर्फ ‘बहुजन एजेंडा’ के सहारे सियासत नहीं कर सकते। दोनों ही गठबंधनों ने अभी तक न तो सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय किया है और न ही उम्मीदवार घोषित किए हैं।

चंद्रशेखर ने रणनीतिक रूप से समय से पहले उम्मीदवार उतारकर उन्हें प्रचार और जमीनी तैयारियों के लिए लंबा वक्त दे दिया है, जिससे उनके पक्ष में हवा बन सकती है।

किन दलों की बढ़ीं मुश्किलें?
एलजेपी (रामविलास) और हम पार्टी:

चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की राजनीति दलित और महादलित वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमती है। चंद्रशेखर का मैदान में उतरना इन दोनों नेताओं के लिए सीधी चुनौती है।

एनडीए:
बिहार में आरक्षित सीटों की बहुलता एनडीए की ताकत रही है। लेकिन इन सीटों पर आजाद समाज पार्टी की मौजूदगी दलित वोटों में सेंध लगा सकती है।

महागठबंधन (INDIA गठबंधन):
2020 में आरक्षित सीटों पर कमजोर प्रदर्शन करने वाला महागठबंधन अब दलित वोटों पर विशेष ध्यान दे रहा है। चंद्रशेखर की एंट्री से यह समीकरण गड़बड़ा सकता है।

बसपा:
मायावती ने यूपी के बाद बिहार में भी अपने नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को उतारा है। लेकिन चंद्रशेखर के आने से बसपा की रणनीति को कड़ी चुनौती मिल सकती है।

प्रशांत किशोर की जन सुराज:
पीके ने दलित चेहरे को पार्टी अध्यक्ष बनाकर संकेत दिया था कि उनकी नजर इस वोट बैंक पर है। मगर चंद्रशेखर की मौजूदगी उनके लिए सीधी प्रतिस्पर्धा का कारण बन सकती है।

यूपी चुनाव से पहले ‘परीक्षा की जमीन’
चंद्रशेखर की पार्टी भले यूपी में अधिक सक्रिय रही हो, लेकिन बिहार चुनाव उनके लिए 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण ‘लिटमस टेस्ट’ है। अगर पार्टी बिहार में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह उन्हें यूपी में बड़ी ताकत के रूप में उभार सकता है।

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